लेखनी कविता -कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ - काका हाथरसी

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कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ / काका हाथरसी  प्रकृति बदलती क्षण-क्षण देखो, बदल रहे अणु, कण-कण देखो| तुम निष्क्रिय से पड़े हुए हो | भाग्य वाद पर अड़े हुए हो| छोड़ो मित्र ...

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